लिखने बैठी एक कविता ‘माँ’ पर – अर्चना सिंह

आया फिर एक सुअवसर,
आई फिर एक खबर,
लिखें कविता शीर्षक ‘माँ’ पर,
सारे जहाँ के शब्दकोश को झकझोर कर,
हर रंगो की स्याही को ढूँढकर,
हर लेखनी के समान को जोड़कर,
लिखने बैठी एक कविता ‘माँ’ पर,
बहुत आनंदित थी ये सोचकर,
आज बनाऊँगी तेरी मूरत अक्षरों पर,
कई पंक्तियों को लिखकर,
कई शब्दों को काटकर,
जाने कितने पन्ने फाड़कर,
एक भी अक्षर लिख ना पाई ‘माँ’ पर,
भीतर से दिल कचोट कर,
ऐसा लगा कि बेटी होकर
एक भी शब्द ना लिख पाई ‘माँ’ पर,
बस फिर क्या था ……
अश्को ने सैलाब तोड़कर,
धो डाले सारे अक्षर,
क़लम थक गई चल-चल कर,
अश्क़ ना रुके निर्झर,
फिर एक आवाज़ आई दिल से निकलकर,
सृजन किया जिसने तेरा,
कैसे बयान करूँ उसे कविता लिखकर….
लेखिका
अर्चना सिंह
पटना