शैली विनोद : समाजसेवा और नारी शक्ति की मिसाल

एक तरफ सरकार अपनी तमाम कोशिशो के बावजूद जरुरतमन्द बच्चो को शिक्षित नहीं कर पा रही है और ना ही उनके चेहरे पर मुस्कान ला पा रही वही कुछ लोग ऐसे भी है जो बिना किसी सरकारी मदद के जरुरतमन्द बच्चो के शिक्षा के लिये लगातार काम कर रहे है। ऐसी ही एक शख्स है पटना मे, जिनके प्रयास से कई जरुरतमन्दो को नई दिशा मिली है, जिनका नाम है शैली विनोद। खास बात यह है कि शैली बिना किसी सरकारी मदद के अपनी स्वयं सेवी संस्था (NGO) भारतीय जन मोर्चा से लगातार अपना काम कर रही है।
पटना मे शैली विनोद ने एक सच्ची सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पह्चान बनाई है। जरुरतमन्द बच्चो की पढाई के लिए शैली तन, मन और धन से जुटी रह्ती है। शैली की स्कूलिंग झारखंड में संपन्न हुई है और वो अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक है। बचपन से ही अपने परिवार के बुज़ुर्गो जैसे इनके दादा और परिवार के अन्य बुज़ुर्ग सदस्यों द्वारा सामाजिक कार्य देखते हुए बड़ी हुई शैली का भी लगाव समय के साथ-साथ समाजसेवा खासकर जरुरतमन्द बच्चो के शिक्षा और बेहतरी के लिए होते चला गया। इनके परिवार के लोग भी सामाजिक कार्य करने में विश्वास करते हैं। शैली बताती है की “जब हम गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाते थे, तो मेरे दादा-दादी हमें (मुझे और मेरी बहन को ) शिक्षक बनाते थे और हम दोनों गाँव के बच्चो को पढ़ाती थी, उस वक़्त मैं क्लास 10 में थी।” अपने ऊपर समाजसेवा का असर अपने बुज़ुर्गो की देन मानने वाली शैली प्रसिद्ध धारी परिवार से ताल्लुक रखती है, इनके पूर्वज जमींदार थे, इनके परिवार का गौरवशाली अतीत रहा है इनके पूर्वजो द्वारा निर्मित कई स्कूल, कॉलेज और अस्पताल हैं।
शैली की मुख्य रूप से ब्लू कॉलर जॉब वालो के लिए जो एक श्रमिक वर्ग व्यक्ति है, जो शारीरिक श्रम करता है, जो श्रमिक कार्य में कुशल या अकुशल हो सकते हैं। जैसे – स्वीपिंग, डस्टिंग, गटर साफ करना, दीवारों की पुताई, सीमेन्टिंग, साफ़-सफाई और कई अन्य प्रकार के शारीरिक कार्य जो शारीरिक रूप से निर्मित या बनाए रखा जाता है के लिए गरिमा, इज़्ज़त और सम्मानजनक भुगतान या वेतन सुनिश्चित करनी चाहती है।
हाल ही में लॉकडाउन पीरियड के दौरान शैली ने कई शौक़ विकसित किये हैं – जैसे बुनाई, खाना बनाना, बागवानी आदि शैली घर के कामों को करने में अच्छी तरह से आनंद लेती है। रचनात्मक लेख लिखना भी इनका शौक है। पढ़ाना इनका पेशा है। अपने माता-पिता की 4 थी संतान शैली पटना के शहरी क्षेत्रो में वंचित एवं जरुरतमन्द बच्चो के लिए प्री और प्राइमरी स्कूल चलाती है, वंचित समुदायों के कानूनी अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है, सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण, सफाई, एवं बागवानी जैसे कार्यो को भी कर रही है। शैली समाज-सेवा जैसे पारिभाषिक शब्द में विश्वास नहीं करती, इनके अनुसार अगर हम किसी की भलाई के लिए कुछ भी करते है तो ये निश्चित रूप से अपनी ही सेवा है ।
शैली खुशी बाटने में विश्वास करती है, इनकी नज़र में सफलता का पैमाना शारीरिक और मानसिक भलाई है, शैली को आस-पास सकारात्मक बदलाव करने के लिए इनके माता-पिता द्वारा हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है। बचपन से ही दुसरो की भलाई में अपनी खुशी खोजने वाली शैली दूसरों की मदद करना या दूसरों के लिए कुछ करने के बदले कुछ और पाने की उम्मीद को सबसे स्वार्थी कार्य मानती है। शैली का मानना है की किसी को कुछ देने या कुछ करने में जो संतुष्टि और आनंद का अनुभव होता है वह एक महान भावना होती है। शैली वैसी झुग्गियों-झोपडी के बच्चो और महिलाओ के लिए कार्य करती है जो स्कूल नहीं जाते। वंचित वर्ग की मदद से शैली एक स्कूल खोलने में कामयाब रही है जिसे यह मुख्य उपलब्धियों में से एक मानती है। शैली कई स्वयंसेवी संस्थाओं में भी काम की हुई है और अभी वर्तमान में अपनी स्वयं सेवी संस्था भारतीय जन मोर्चा के लिए कार्य कर रही है। शैली बिहार सरकार के कई विभाग जैसे – शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के साथ कई सरकारी स्कूलों को पुनर्जीवित एवं अकादमिक सहायता प्रोजेक्ट्स पे कार्य की हुई है तथा साथ ही इनको यूनिसेफ के साथ काम का भी अनुभव है।
शैली खुद की अति ख्याति या लोक प्रसिद्धि (Lime light) से अपने आप को दूर रखते हुए अपने कार्य में व्यस्त रहती है, इनका मानना है की मैं जो भी कार्य कर रही हूँ ये कार्य बच्चो के लिए ईमानदारीपूर्वक परिणाम दे वही मेरी संतुष्टी होगी। शैली का कहना है की मुझे अपने बारे में बात करते हुए बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है, यदि मेरी कहानी किसी और को भी बच्चे लोगो के लिए ईमानदारी से काम करने के लिए प्रेरित कर सकती है तो मेरी यह उपलब्धी होगी। अपने स्वयं सेवी संस्था की भविष्य की योजना के बारे में शैली बताती है की “अगले कुछ वर्षों में वर्तमान गतिविधियों को बढ़ाने की योजना है, अगले कुछ वर्षों में हमें उम्मीद है कि सामान्य वर्ग (General category) के बच्चे भी हमारे साथ जुड़ेंगे, हमारे स्कूल में पढ़ेंगे, यही हमारी उपलब्धि होगी। हम इसे डोर-टू-डोर अभियान द्वारा हासिल करेंगे। हालाँकि हम एक निश्चित बिंदु से आगे का विस्तार नहीं करना चाहते हैं।
शैली का आज-कल के युवाओ को सन्देश देते हुए कहना है की “हमें कभी भी किसी को जाने बिना अपनी राय नहीं बनानी चाहिए, ये अभी की पीढ़ी की कमजोरी है, हम तुरंत निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं । आगे शैली कहती है की जिस मीडिया, प्रचारतंत्र ने हमें सफलता की परिभाषा बताई है, उसे हमें खुद नए सिरे से परिभाषित करना होगा, ऐसी सफलता द्वेष, कलह, स्वार्थ, निराशा और कुंठा की जड़ है। युवाओ के लिए एक महत्वपूर्ण सन्देश ये भी है की हमें अपने शरीर, दिमाग और दिल तीनो को एक सुर, लय और ताल में लाना होगा जैसे –
– शरीर को अच्छे खान-पान, व्यायाम और आराम से,
– दिमाग को सकारात्मक (Positive) और यथार्थ सोंच (Real thought) एवं पढ़ाई से,
– दिल को मोहब्बत से एक लय (Rhythm) में लाया जा सकता है।
और तीनो को ताल में यानी सामंजस्य (Harmony) में आना ही सफलता है।
शैली का युवाओ से ये भी कहना है की ज़िन्दगी आज में है, इसलिए रिश्तों को फॉर ग्रांटेड ना ले, टेक्नोलॉजी के गुलाम ना बने बल्कि आप उसको नचाये ना की टेक्नोलॉजी के ईशारे पे आप नाचे। शारीरिक श्रम करें सिर्फ मानसिक श्रम ही काफी नहीं है, मिट्टी, धुल, कचरे से भी हाथ गंदा करने की आदत डाले। जो भी आप करे थोड़ा-थोड़ा करे ताकि उसको कायम रखा जा सके। किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश ना करे, हर दिन खुद को प्रभावित करें। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए जिससे आप का दिमाग उलझनों से बचा रहे।
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