कैसे जुझारपुर से बना मिथिला का झंझारपुर

झंझारपुर के नामकरण के विषय में ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज की पराजय के बाद बिखरे चंदैल राजपूत सरदारों ने यत्र-तत्र अपना ठिकाना ढूँढ लिया। ऐसे ही महोबा के चंदेल राजपूत सरदार जुझार सिंह ने निर्जन जगह पाकर झंझारपुर में अपना पड़ाव रखा। उनके यहीं बस जाने से उनके नाम पर ही इस जगह का नाम जुझारपुर हो गया जो धीरे-धीरे झंझारपुर के रूप में उच्चरित होने लगा.
राजपूत जातियाँ ११वीं और १२ वीं शताब्दी में एक दुसरे के विरूद्ध निरंतर युद्ध करती रही | चंदेल ,परमारों और कल्छुरियों के विरूद्ध युद्ध में व्यस्त रहे |१२ वीं शताव्दी में चौहानों ने उन पर आक्रमण किया| राजपूतों के बीच आपसी संघर्ष चल ही रहा था कि इसी बीच भारत पर मोहम्मद गौरी का आक्रमण हुआ | अंतिम चौहान राजा पृथ्वीराज उसके हाथों पराजित हो गए | गौरी तुर्क अफगान सरदार ऐवक ने १२०२-१२०३ ई० बुंदेलखंड पर आक्रमण किया और चंदेल राजा मर्दीदेव मारा गया | उसके मंत्री अजय देव ने युद्ध जारी रखा | परन्तु अंत में उसने भी कालिंजर के किले को छोड़ दिया | कालिंजर जीतने के बाद ऐवक ने महोबा,खजुराहो आदि पर भी अधिकार कर लिया | अब चंदेल राजपूत बिखर चुके थे | जिसे जिधर सुरक्षित स्थान नज़र आया उधर का ही रुख किया | महोबा के जुझार सिंह के परिवार ने बिहार की ओर रुख किया| इस समय बिहार पर लक्ष्मण सेन का अधिकार था |मगर,तुर्कों ने बिहार पर भी आक्रमण किया और इतियारुद्दीन ने चतुराई से लक्ष्मण सेन को पराजित किया |अब तक तुर्कों का दहशत काफी फ़ैल गया था |ऐसे में चंदेल राजपूत भागकर निर्जन स्थान पर पहुंचे जिसके सरगना जुझार सिंह थे |उनके साथ चमैन और धोबी भी चल रहे थे पूरा काफिला सुरक्षित स्थान समझकर निर्जन में ठहर गया |
जुझार सिंह के वंशज,बाद में सुदै,कुरसो,सिकरिया एवं बाथ में फ़ैल गए | जुझार सिंह के नाम पर इस स्थान का नाम जुझारपुर रखा गया,जो आज झंझारपुर के नाम से जाना जाता है |इन राजपूतों ने उक्त चारों स्थानों पर ‘रक्त्माला’भगवती की स्थापना की | झंझारपुर में यह भगवती झंझारपुर थाना से दक्षिण एक पेड़ के नीचे अवस्थित है | इसे ग्रामदेवी माना जाता है,क्योंकि चंदेलों की कुल देवता धर्मराज माने गए हैं |
झंझारपुर पर राजपूतों के अधिपत्य की चर्चा जिला गजेटियर दरभंगा (१९०७)में ओमाल्लाई ने भी की है | झंझारपुर में विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं |जुझार सिंह के साथ आये चमार तथा धोबी अल्पसंख्यक हो चले हैं ,बांकी बचा है ’रक्त्माला ‘भगवती की महत्ता एवं राजनैतिक दांव-पेंच का अखाड़ा |
द्वारा : रमन दत्त झा (दरभंगा / पटना)