जरा थम जा रे जिंदगी…

कितनी रफ्तार से चल रही है यह जिंदगी
सभी के अंदर आगे जाने की चाह है
कोई रुकता क्यों नहीं ठहरता क्यों नहीं
जरा थम जा रे जिंदगी
तुझे जीना है, समझना है, शायद परखना भी है
फिर रफ्तार से तेरे साथ चलूंगी
तेरे हाथों को थामे
सारी दुनिया से लड़ कर, खुशी से जिऊंगी ओ ज़िन्दगी
बस तु थम जा, थोड़ा तु थम जा
लेखिका : दिव्या सिंह (संस्थापिका – नव्या)